एक निर्दयी व्यक्ति ग़रीबों पर अत्याचार किया करता था. वह एक लकड़हारे से सस्ते
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शेख सादी |
दामों पर लकड़ियां खरीदकर आगे महंगे दामों पर बेचकर काफी लाभ कमा लिया करता था. एक दिन उसी रास्ते पर एक भले आदमी का गुज़र हुआ तो उसने कहा, क्या तू सांप है? हर एक को डस लेता है. मुझे लगता है तू उल्लू है, जहां बैठता है, वहां वीरानी फैला देता है. इसका यह मतलब नहीं कि तू अगर ताक़तवर है तो कमज़ोरों पर अपनी ताक़त दिखाकर दौलत कमाए. देख! ज़मीन पर रहने वाले बन्दों पर ज़ुल्म मत कर. तुझे नहीं मालूम, जाने कब किस दुखी बन्दे की बद्दुआ उसके दिल से निकलकर आसमानों के उसपार बैठे खुदा तक पहुंच जाये जो ताक़त भी देता है और उसे छीन लेने की ताक़त भी रखता है.
उस निर्दयी व्यक्ति को नेक बन्दे की नसीहत पसंद नहीं आई. वह अपने गुनाहों का दलदल तैयार करता रहा. एक रात उसकी लकड़ियों के ढेर में आग लग गई. सबकुछ जलकर राख हो गया. वह अब राख पर बैठता और सो जाता था.
एक दिन वही नेक बंदा फिर उसी रास्ते से गुज़रा और देखा कि ज़ालिम इंसान की सारी लकड़ियां राख हो चुकी हैं.