सोवियत यूनियन के बिखरने से अंतर्राष्ट्रीय सामरिक संतुलन का बिगड़ जाना स्वाभाविक था. अमेरिका अब नाटो के सहारे अपनी उन सामरिक योजनाओं को पूरा करने के उद्देश्य से अपने कदम बढ़ाने के लिए आजाद था.
डिक्चेनी ने इसका फायदा उठाते हुए इराक, ईरान और उत्तरी कोरिया की ओर अपने प्रचार की तोपों के दहाने खोल दिए. प्रचारित किया जाने लगा कि ये तीनों मुल्क एटमी ताकत बनने के लिए यूरेनियम के ज़खीरे जमा कर रहे हैं. उत्तरी कोरिया एक गैर मुस्लिम देश है. अमेरिका ने इसे डिप्लोमेटिक पोलिसी को ध्यान में रखते हुए ही अपने एजेंडे में शामिल किया था. भविष्य में भी उसपर हमला करने का कोई इरादा भी नहीं था. में इराक पहले नंबर पर था. इराक के हुक्मरां सद्दाम हुसैन थे जिनसे बुश सीनियर की पुरानी दुश्मनी थी. सद्दाम एक सैनिक तानाशाह थे, इसमें कोई दो राय नहीं कि सद्दाम ने अपने शासनकाल में हजारों-लाखों बेगुनाह इराकियों के खून से होली खेली. इनमें ८६.०७ प्रतिशत शीया मुस्लिम थे. शीया बहुल ईरान से ८ वर्ष तक जंग . बग़दाद स्थित पवित्र इमारतों की दीवारों को गोलियों से छलनी किया, जिनके निशान आज भी वहां देखे जा है. वर्षों से ६० प्रतिशत से अधिक आबादी वाले देश पर सुन्नियों का जालिमाना शासन रहा. इन्कलाब-इ-ईरान बाद इराक में इन्कलाब का आना स्वाभाविक था लेकिन इससे पहले कि वहां इन्कलाब आता, अमेरिका ने अपनी चाल चल दी. डिक्चेनी ने सऊदी अरब के शाह को अपने प्रभाव में लेकर राज़ी किया कि वह अमेरिकी के लिए अपने हवाई अड्डे उपलब्ध कराये और इस्लामी कट्टरपंथियों से न केवल सख्ती से निपटें बल्कि अमेरिकी सैनिकों से भी दूर रखें. डिक्चेनी की डिप्लोमेसी काम करने लगी थी. इसी के तहत मार्च,२००३ में अमेरिका अपने टैंक बगदाद में प्रवेश कराने में कामियाब हुआ. यही नहीं, टैंकों के साथ ही अमेरिका ने पहली बार अपनी किराये की सेना को भी बगदाद में दाखिल कर दिया जिसका ज़िक्र ऊपर किया जा चुका है. यह वह फ़ौज थी जिसने अफगानिस्तान में अपने जालिमाना जौहर दिखाकर डोनाल्ड रम्सफील्ड के हौसले बुलंद कर दिए थे. CIA के रिटायर्ड अधिकारी कोफर ब्लैक ने किराये की सेना के ख़ुफ़िया तंत्र का निदेशन अपने हाथ में ले लिया था. यहाँ विशेष महत्वपूर्ण बात यह है कि अमेरिका के पूर्व सीनियर-जूनियर राष्ट्रपति बुश अमेरिका के निजी सामरिक हितों को भूल कर डिक्चेनी की उन महत्वपूर्ण महत्वकांक्षाओं को नहीं समझ पाए या समझना नहीं चाहा जो इस्राईल को एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में पनपते देखना चाहता है और अरब के मुस्लिम देशों को गुलाम बनाना चाहता है क्योंकि उनके पास तेल की अकूत दौलत है. अरब के मुसलमानों और यहूदियों के बीच शुरू से छत्तीस का आंकड़ा रहा है. हालाँकि दोनों के पैगम्बर कुरआन का हिस्सा हैं. हजरत पैगम्बर सुलेमान अगर यहूदियों के पैगम्बर हैं तो वह मुसलमानों के भी हैं. लेकिन कुरआन यहूदियों पर यकीन न करने की हिदायत भी देता है. अमेरिका में ३६ प्रतिशत इकोनोमी पर यहूदियों की इजारेदरी है. वहां अनेक यहूदियों की संस्थाएं हैं. डिक्चेनी एक कट्टरपंथी यहूदी होने के कारण उनसे जुदा रहता है. बुश का पैत्रिक व्यवसाय तेल है. उसकी आयल रिफायनारीस इराक में भी रही हैं और उसमें यहूदियों की बड़ी हिस्सेदारी रही है. उन हिस्सेदारों में डिक्चेनी भी एक है. एक कमिटेड यहूदी होने के नाते उसने सत्ता में रहते हुए सदैव इस्राईल की सैनिक ढाल बने रहने का काम किया. वह नहीं चाहता था कि इस्राईल के आस-पास के इस्लामी मुल्क ताकतवर बनें. इराक और लीबिया को आर्थिक और सामरिक मदद करते रहे हैं जिसमें सऊदी अरब भी एक है. फिलिस्तीनी मुजहिदिनी संगठन इस्राइली शासकों के लिए शुरू से सर दर्द बने रहे हैं. यासिर अराफात की हत्या करने के बाद इसराइल अब फिलिस्तीनी संगठनों के सभी स्रोतों को समाप्त कर देना चाहता है. इसलिए बग़दाद पर कब्ज़ा करते ही मोसाद अमेरिका की ब्लैक फ़ोर्स के साथ मिलकर लगातार कार्यवाई करता रहा. यहाँ तक की उसके सैनिक तक इराक में अपने मज़बूत ठिकाने बनाते रहे और हर उन ठिकानों पर हमले करते रहे जहाँ से इसराइल को खतरे महसूस हो रहे थे. इस योजना के पीछे का दिमाग डिक्चेनी का था. उनकी ताकत को तोड़ने और सदैव उसके देशों को डिस्टर्ब रखने की योजना भी उसी की ही थी जिसमें स्पष्ट है कि अमेरिका के भी हित छुपे हुए थे.
क्रमशः : जारी /-2