हम नहीं जानते कि दुनिया में धर्म कब आया और कब इसके नशे ने तमाम मानवता को अपनी गिरफ्त में समेट
लिया. हमारी नज़र में धर्म तब आया होगा जब ज़मीन में गड़गड़ाहट हुई होगी और उस समय के बहुत से लोग और परिवार ज़मीन में धंस गए होंगे. बचे हुए लोगों के लिए यह एक अदृश्य भय रहा होगा.
प्रकृति ने तब भी मनुष्य के सामने किसी न किसी रूप में असंख्य रहस्यमयी भय दिखाकर उनका मौत से सामना कराया होगा. मौत ने जब डरावनी छवि के रूप में समाज में अपनी जगह बना ली तो उसकी तलाश हर उस चीज़ में की जाने लगी जो ताक़तवर से ताक़तवर मनुष्य का अंत करने में सक्षम हो सकती थी. मनुष्य ने जब मनुष्य की हत्या की तो वह शक्तिमान बन गया और जब उसने अपनी शक्ति पहचानकर दूसरों की हत्याएं करनी और करानी शुरू कर दीं तो लोग उसे देवता समझने लगे. उसके आगे झुकने लगे ताकि वह बलिष्ठ व्यक्ति कमज़ोर व्यक्ति की हत्या न करे.
बलिष्ठ जब देवता बना तो उसने झुके हुए व्यक्ति को दास कहना शुरू कर दिया. स्वाभाविक रूप से दास ने अपने देवता को अदृश्य शक्ति का भेजा हुआ दूत मान लिया. दूत, ने मान लिया कि जो झुकाने की शक्ति रखता है, वह देवता है और जो झुक जाये वह दास है. यही शक्ति कालांतर में राज सिंहासन का उत्तराधिकारी बन गया. राजा ने जो कहा, प्रजा ने वही माना। इसके बाद का संघर्ष आपातकाल में युद्ध करना था और अम्न के माहौल में अपनी श्रेष्ठता को प्रचारित करते रहना था. यह श्रेष्ठता का चलन आजतक कमोबेश किसी न किसी रूप में जारी है. देवता आज भी क़ीमती महलों, राज-भवनों, मठों और सेवंथ-स्टार-आश्रमों में अपने अनुयायियों की भीड़ भरी छतरी के साये तले रहते-बसते हैं और दास अपने देवता के इशारे पर पल भर में बेटे की बलि चढ़ा देता है, अवज्ञा के अपराध में सरे-बाजार मार भी खा लेता है, देवता के प्रतद्वन्द्वियों की इबादतगाहें मिसमार कर देता है, भीड़ की शक्ल में निर्दोष इंसानों को जलाकर मार डालता है.
बदला कुछ भी नहीं है. सोच का बिंदु कभी ब्रह्माण्ड का रूप नहीं ले सका है.
ऐसे में फिर एक युवा पत्रकार चिंतक-विचारक श्री भव्य मानवता की छतरी लेकर कल अपनी वेबसाईट रेलिजन-वर्ड के दरवाज़े से बाहर आकर भारत की पवित्र धरती पर पाँव रखेगा। इस अवसर पर विश्व के असंख्य धर्म के मतावलम्बी, चिंतक, विचारक, नए सूर्योदय का स्वागत करते हुए जल चढ़ाकर कौन सा मौन संकल्प लेंगे, इस धूप की प्रतीक्षा रहेगी. श्री भव्य का मैं स्वागत करता हूँ और दुआ करता हूँ कि वैश्विक शांति के इस महायज्ञ में भव्य विजयी हों. आमीन!