Editorial : बुरा कौन है? हिन्दू या मुसलमान?

सम्पादकीय : गुजरात का मतदाता मौन है. बीजेपी आश्वस्त है. कांग्रेस में आत्मविश्वास पनप रहा है लेकिन उसमें सशक्त नेतृत्व का अभी भी अभाव दिखाई देता है. कांग्रेस के दिग्गज मन की बात भी ज़बान पर नहीं लाना चाहते. वे जानते हैं कि कांग्रेस इसबार गुजरात में पार्टी को शर्मिंदगी से बचा लेगी. पार्टी का चुनाव भी होना है जिसमें राहुल की ताजपोशी होना तय है. कांग्रेस के स्थाई पतन की यहीं से शुरुआत होना लाज़मी है. यदि पार्टी में वंशवाद ही चलाना है तो हर स्थिति में अंततः प्रियंका को शीर्ष नेतृत्व की प्रथम पंक्ति में लाना ही होगा , गुजरात के नतीजे चौंकाने वाले नहीं होंगे क्योंकि वहां विकल्प नहीं है. ---डॉ. रंजन ज़ैदी

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शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

भारतीय शीया-सुन्नी समुदाय के बीच फूट... / डॉ. रंजन ज़ैदी

बाबरी मस्जिद को लेकर देश की सियासत तेज़ हो गई है. देश के शिया समुदाय से सम्बन्ध रखने वाले
बाबरी मस्जिद पर 2005 हमला हुआ  
नेतृत्वविहीन लगभग सात करोड़ देश वासी हतप्रभ हैं कि उनके फैसले अब वे लोग करने लगे हैं जिनका अपना कोई निजी आधार नहीं है और जो सुन्नी समुदाय से दूरी बनाकर रहने की कल्पना तक नहीं करते हैं जबकि हर ज़माने की सरकारों ने दोनों समुदायों के बीच एक खालीपन को बनाये रखने की निरंतर सियासी साज़िश जारी रखी है.
      इस स्पेस में अब एक और मध्यस्थ श्री श्री रविशंकर  विवाद के अखाड़े में कूद पड़े हैं. जबकि अखिल भारतीय अखाडा परिषद् का दावा है कि शिया वक़्फ़ बोर्ड के सहयोग से समझौते की शर्तें सहमति की चौखट तक पहुँच चुकी हैं. शिया वक़्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिज़वी कहते हैं कि 5 दिसंबर से पहले ही उच्चतम न्यायलय में हलफनामा दाखिल कर दोनों पक्ष समझौते के काग़ज़ात दाखिल-दफ्तर कर देंगे.
बाबरी मस्जिद की सियासत
     अखिल भारतीय अखाडा परिषद्   कुछ अवसरवादी लोग अपने स्वार्थों को लेकर इतने उत्साहित हैं कि वे अखिल भारतीय अखाडा परिषद् तमाम मान-मर्यादाएं लांघकर ऐसे जंगली दलदल में कूद पड़ने के लिए ललायित  हैं (जिसमें ठंडक तो मिलती है लेकिन हर पल जिस्म धंसता भी चला जाता है).  और सत्ता के नशे में पता भी नहीं चलता कि मौत प्रतिपल करीब आती जा रही है.
      शिया वक़्फ़ बोर्ड के  अध्यक्ष वसीम रिज़वी का गेमचेंचर भी ऐसा ही है. उन्होंने सत्ता-पक्ष की राजनीति को खुश करने के लिए बाबरी मस्जिद विध्वंस को सीधे-सीधे पाकिस्तान की कूटनीति से ही जोड़ दिया. उन्होंने अभी तक मंदिर-निर्माण में हुई देरी की ज़िम्मेदारी पाकिस्तान पर थोप दी. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान राम-मंदिर बनने की राह में अडचनें पैदा कर रहा है. राम-मंदिर मुद्दे को लेकर ऐसा आरोप तो शायद हिन्दू कट्टरपंथियों ने भी नहीं लगाया होगा. बोर्ड के  अध्यक्ष वसीम रिज़वी ने कहा कि  अयोध्या-विवाद में पाक की ओर से कट्टर-पंथियों को फंडिंग की जा रही है. वसीम रिज़वी ने ऐसी सूचनाओं के स्रोतों का खुलासा नहीं किया। उन्होंने यह भी नहीं बताया कि लश्करे तैय्यबा का बाबरी मस्जिद की सियासत से क्या रिश्ता किस तरह और कैसा है. 
      शिया वक़्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष को यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि देश के शिया समुदाय से सम्बन्ध अखिल भारतीय अखाडा परिषद्  को साथ लेकर सुप्रीम-कोर्ट के सामने एलान करते हैं कि इस देश के 20 करोड़ मुस्लिम अवाम अपने देश के 80 करोड़ हिन्दू अवाम की धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए ध्वस्त बाबरी मस्जिद की जगह पर राम मंदिर बना लेने की अनुमति देने के लिए बिचौलियों के बग़ैर तैयार हैं.  तब भला शिया वक़्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष की भूमिका क्या होगी? किस तरह वह अपने आर्थिक निजी विवादों को हल करने के लिए सरकार से सहयोग ले सकेंगे?
 अखिल भारतीय अखाडा परिषद् की बैठक 
रखने वाले नेतृत्वविहीन लगभग सात करोड़ देश वासियों ने या सुन्नी वक़्फ़-बोर्ड के शीर्ष नेतृत्व ने अपना नेता नहीं बनाया है और न ही उन्हें यह अधिकार दिया है कि वह शिआ-सुन्नी समुदाय के बीच किसी भी तरह की दरार डालने की भूमिका अदा करें. यदि संयुक्त राय से दोनों समुदाय राम मंदिर विवाद का हल निकालकर विवादित ज़मीन के लिए
      लेकिन सच्चाई यह है कि अब पक्षकार पीछे वाली पंक्ति में चले गए हैं और अवसरवादी कूटनीतिज्ञ आगे आ गए हैं जो शिया और सुन्नी समुदायों को ही विभाजित करने के प्रयास में जुट चुके  हैं. यह एक बड़े षड़यंत्र का सिनेरियो है जो 2019 के चुनाव को सामने रखकर तैयार किया गया है.   

       अंतर्राष्ट्रीय घटना-क्रम को देखें तो इस सम्बन्ध में विशेष उल्लेखनीय बात हमें यह देखने को मिल रही है कि  भारतीय शीया-सुन्नी समुदाय के बीच के इत्तेहाद को भंग करने के लिए बड़े ही सुनियोजित ढंग से इंग्लैण्ड की ख़ुफ़िया एजेंसी एमआई सेक्शन-6  पाकिस्तान के  संभ्रांत परिवार से सम्बन्ध रखने वाले सैयद सादिक़ शीराज़ी की मदद से अपना जाल फैला रही  है.  सैयद सादिक़ शीराज़ी  पाकिस्तान के धार्मिक गुरु स्वर्गीय सैयद मुज़्तबा शीराज़ी के  पारिवारिक सदस्य हैं. बताया जाता है कि कुछ निजी टीवी चैनल जैसे विसाल, कलमा-6 तथा
भारत के गृह मंत्री  के साथ मौलाना सैयद कल्बे जव्वाद
सलाम टीवी चैनल के माध्यम से इस प्रकार के धार्मिक साहित्य का प्रसारण करवाया जा रहा है और कहा जा रहा है कि फ़ित्नों को हवा दो, रोज़े-कुर्ज और रोज़े-तबर्रा  पर अधिक फोकस रहे ताकि दोनों समुदायों के बीच खटास बढ़ सके और सुन्नी-शीया समुदायों के बीच नफ़रत की मात्रा भी बढ़ सके. इससे  दोनों के बीच दंगों की भूमिका तैयार होने में सुविधा होगी. इस सम्बन्ध में एजेंसी सम्बंधित कथितअसामाजिक तत्वों के माध्यम से खुले हाथों से पैसा भी बाँट रही है. 
       मौलाना सैयद कल्बे जव्वाद ने अपने साक्षात्कार में कहा कि अमेरिका और इस्राईल की सीआईए और मोसाद का कार्य-क्षेत्र खाड़ी के देशों और उन मुस्लिम देशों में सक्रिय है जो  ग्रेटर इस्राईल का सपना पूरा करने में सक्रिय हैं. इराक़ के पूर्व राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के पतन के बाद अब इस्राईल शीघ्रति-शीघ्र ग्रेटर इस्राईल पर तेज़ी से काम कर लेना चाहता है जिसमें उसे योजनानुसार अबतक निरंतर सफलता मिलती आ रही है. सैयद कल्बे जव्वाद ने कहा कि ऐसे नाज़ुक समय में हमें आंदोलन की ज़रुरत है ताकि युवा पीढ़ी को गुमरही से बचाया जा
सके. उन्होंने कहा की यदि समय रहते स्थिति को काबू में नहीं किया गया तो अहले-सुन्नत की तरह शियों में भी मलंगी, अखबारी व उसूली मस्जिदें होने लगेंगीं और पाकिस्तान के शियों में ऐसा होने भी लगा है. उन्होंने मुंबई की मेहदी एसोसिएशन और मौलाना अहमद अली आब्दी  पर आरोप लगाते हुए कहा कि इनके पीछे की साज़िशों के बानी खोजा-लाबी कार्यरत है जिसे ऐसा नहीं करना चाहिए इससे क़ौम को नुकसान पहुँच सकता है.
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