Editorial : बुरा कौन है? हिन्दू या मुसलमान?

सम्पादकीय : गुजरात का मतदाता मौन है. बीजेपी आश्वस्त है. कांग्रेस में आत्मविश्वास पनप रहा है लेकिन उसमें सशक्त नेतृत्व का अभी भी अभाव दिखाई देता है. कांग्रेस के दिग्गज मन की बात भी ज़बान पर नहीं लाना चाहते. वे जानते हैं कि कांग्रेस इसबार गुजरात में पार्टी को शर्मिंदगी से बचा लेगी. पार्टी का चुनाव भी होना है जिसमें राहुल की ताजपोशी होना तय है. कांग्रेस के स्थाई पतन की यहीं से शुरुआत होना लाज़मी है. यदि पार्टी में वंशवाद ही चलाना है तो हर स्थिति में अंततः प्रियंका को शीर्ष नेतृत्व की प्रथम पंक्ति में लाना ही होगा , गुजरात के नतीजे चौंकाने वाले नहीं होंगे क्योंकि वहां विकल्प नहीं है. ---डॉ. रंजन ज़ैदी

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रविवार, 11 जून 2017

'अल्लाह के बन्दे! अगर तुम अपनी इच्छा से चलते हो तो...

      मिस्र की फ़तह  के बाद वहां के तत्कालीन गवर्नर का मौलाए-कायनात हज़रत अमीरुल-मोमेनीन अली
इब्ने  अबीतालिब (स) के नाम एक पत्र आया. पत्र कुछ इस प्रकार था-
      हम्दो-सलवा (यानि तमाम सरकारी औपचारिक शब्दों की अदायगी) के बाद  उसने लिखा,' ऐ अमीरुल-मोमेनीन! मैं यहाँ की एक सामाजिक परंपरा की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ. परंपरा यह है कि  दरियाए नील एक दिन बहते-बहते रुक जाता है.  इस दिन इस इलाक़े के बाशिंदे एक लड़की को सजा-संवारकर दरियाए नील  के किनारे लाकर  इसमें फ़ेंक देते हैं. दरिया भेंट स्वीकार कर पुनः चलना प्रारम्भ कर देता है. हर बार की तरह दरिया चलते-चलते फिर रुक गया है.
      ऐ अमीरुल-मोमेनीन! इलाक़े के स्थानीय निवासी एक सजी-संवरी लड़की को भेंट चढाने के उद्देश्य से मेरे पास रस्म-अदायगी की अनुमति लेने आये हैं. ऐसे में मुझे आपके आदेश की ज़रुरत है. आप जानते हैं और इस विषय में मुझे आपको बताने की ज़रुरत भी नहीं है कि दरयाये-नील की सभ्यता, संस्कृति, उसकी खेती, व्यापार और दैनिक जीवन-शैली को कितना प्रभावित करती है. वही दरिया इस समय सूख चुका  है.
  
    हज़रत अली ने गवर्नर मिस्र को जवाबी पत्र  भेजा, कहा, इसे दरिया में डाल देना. पत्र में लिखा था.
      'अल्लाह के बन्दे! अगर तुम अपनी इच्छा से चलते हो तो मत चलो. यदि तुम्हारा हर क़दम अल्लाह की मर्ज़ी से चलता है तो हम अल्लाह से सवाल करते हैं कि वह तुम्हें चला दे. 
      आदेश का पालन करते हुए गवर्नर उमर बिन अलास  ने सजी-धजी दुल्हन को उम्मीद भरी नज़र से देखा और कहा, 'जाओ, अपने घर लौट जाओ. अल्लाह तुम्हें नई ज़िन्दगी अता करे. अब दरियाये-नील कभी नहीं रुकेगा. '
      उमर बिन अलास  अपने लाव-लश्कर के साथ दरयाए-नील के उस किनारे पर पहुंचे जहाँ आज की रस्म अदा की जाने वाली थी. भीड़ ने गवर्नर को देखा तो भीड़ उसकी तरफ ही उमड़ पड़ी. गवर्नर उमर बिन अलास ने हज़रात अली का लिखा परचा आदेश के अंतर्गत दरिया में दाल दिया. भीड़ उमड़ी पद रही थी. लोग एकदूसरे पर गिरे पड़ रहे रहे थे कि अचानक दरिया बहने लगा. ऐसा दृश्य देखकर अल्लाहो अकबर के नारों से वातावरण गूँज उठा.
      कहते हैं कि तबसे न तो दरिया में लड़कियों की क़ुरबानी दी जाती है और न ही दरिया आजतक लाभ बहते-बहते रुका.      

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