Editorial : बुरा कौन है? हिन्दू या मुसलमान?

सम्पादकीय : गुजरात का मतदाता मौन है. बीजेपी आश्वस्त है. कांग्रेस में आत्मविश्वास पनप रहा है लेकिन उसमें सशक्त नेतृत्व का अभी भी अभाव दिखाई देता है. कांग्रेस के दिग्गज मन की बात भी ज़बान पर नहीं लाना चाहते. वे जानते हैं कि कांग्रेस इसबार गुजरात में पार्टी को शर्मिंदगी से बचा लेगी. पार्टी का चुनाव भी होना है जिसमें राहुल की ताजपोशी होना तय है. कांग्रेस के स्थाई पतन की यहीं से शुरुआत होना लाज़मी है. यदि पार्टी में वंशवाद ही चलाना है तो हर स्थिति में अंततः प्रियंका को शीर्ष नेतृत्व की प्रथम पंक्ति में लाना ही होगा , गुजरात के नतीजे चौंकाने वाले नहीं होंगे क्योंकि वहां विकल्प नहीं है. ---डॉ. रंजन ज़ैदी

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गुरुवार, 29 सितंबर 2022

एक साहित्यकार का कोलाज़ / Ranjan Zaidi

कमलेश्वर जी कि पुण्य-तिथि पर विशेष- एक साहित्यकार का कोलाज़ नई दिल्ली स्थित होटल जनपथ. लॉबी के एक कोने में मैं और शम्सुस ज़मां साहेब कोहनियों पर झुके राज़ो-नियाज की बातों में खोये हुए हुए थे. उन दिनों संजय डालमिया के लिए ज़मां साहेब दिल्ली से निकलने वाले ऑब्ज़र्वर पत्र समूह के प्रबंधक और प्रकाशक का पद-भार संभाले हुए थे. हम दोनों के बीच संवाद का विषय थे कमलेश्वर जी. वह चाहते थे कि मैं कमलेश्वर जी से पहले एक अनौपचारिक बैठक का प्रबंध करूँ, फिर उन्हें ऑब्ज़र्वर पत्र समूह के प्रमुख-पद के निमंत्रण का प्रस्ताव दूँ. कमलेश्वर जी की रिहाइश तब चार्मसवुड विलेज में थी और मैं अक्सर वहां आता-जाता रहता था क्योंकि दैनिक जागरण से निकलने के बाद मैं कमलेश्वर जी के साथ ही जुड़े रहना चाहता था. तब वह राष्ट्रीय सहारा जॉइन कर चुके थे लेकिन वह सहारा में भी देर तक नहीं रहना चाहते थे. इसीलिए मैंने एक दिन उनके घर पहुंचकर गायत्री भाभी के सामने शम्सुस ज़मां साहेब का प्रस्ताव रख दिया तब कमलेश्वर जी भाभी और मुझे साथ लेकर पिछले कमरे में पहुंचे और कहा, अब बताओ, तुम बाहर क्या कह रहे थे? कमलेश्वर जी ने जो सैलरी बताई, वह ज़मां साहब को मंज़ूर नहीं हुई, संयोग से अपनी आतंरिक आर्थिक समस्याओं के कारण सन्डे मेल और ऑब्ज़र्वर भी बंद हो गया. इधर कमलेश्वर जी ने दैनिक भास्कर जाइन किया और उधर मैंने भारत सरकार के एक निकाय केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड की पत्रिका 'समाज कल्याण' को ज्वाइन कर लिया. तब गायत्री भाभी ने फोन पर बधाई दी. कमलेश्वर जी ने पूछा,' सरकारी नौकरी बुरी नहीं होती है. तुमने जॉइन कर अच्छा किया. आते रहना., लेकिन इतना व्यस्त मत हो जाना कि तुम्हारा लेखन ही ख़त्म हो जाये और मेरी कहानी 'नीली झील' पर जो तुमने स्क्रिप्ट लिखी है, वह लाजवाब है. शाबाश! मैंने उसे मुंबई भेज दिया है....' कवि मित्र आलोक त्यागी जो कमलेश्वर जी के दामाद और स्वर्गीय ग़ज़लकार दुष्यंत जी के सुपुत्र हैं, मेरी उनसे कई बार बातें हुयी थीं, चाहा था कि कोई एक संस्था कमलेश्वर जी की स्मृति में बनाई जाये जिसके माध्यम से कोई पुरस्कार दिया जाये और उनके साहित्य पर बहुत सा काम किया जाये, लेकिन गायित्री भाभी मुंबई शिफ्ट हो गयीं क्योंकि अब आलोक सपरिवार स्थायी रूप से अपनी माता जी के साथ वहीं शिफ्ट हो चुके थे और कमलेश्वर जी भी नहीं रहे थे , गायित्री भाभी अपनी सहेली (दुष्यंत की पत्नी) और बेटी-धेवती से अब दूर नहीं रह सकती थीं. फिर यह हुआ कि दोनों सहेलियोँ भी दिवंगत हो गयीं. इस तरह एक युग का समापन हो गया. श्रद्धांजली! अब स्थितियां और साहित्य की अवधारणाएं बिलकुल बदल चुकी हैं. 9350934635

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