मुंबई, उर्दू मरकज़ : उर्दू के वरिष्ष्ठ साहित्यकार और बॉलीवुड की अनेक सुपर हिट फिल्मों के लेखक व
निदेशक सागर सरहदी ने कहा है कि आज हम लोग बहुत बुरे हालात में जी रहे हैं. हमें चारों तरफ से घेरकर गुमराह किया जा रहा है. ताकि हम अपनी मूल समस्याओं से भटक जाएँ. सागर सरहदी उर्दू नाटककार आफताब हसनैन के सम्मान में महाराष्ट्र राज्य अकादमी की ओर से आयोजित एक साहित्यिक कार्यक्रम में बोल रहे थे.
जब मेरी लिखी फिल्म कभी-कभी हिट हुई तो मेरे सामने 40 फिल्मों के ऑफ़र आये लेकिन मैंने उनमें से किसी एक को भी साइन नहीं किया. कर लेता तो बाजार जैसी मूवी हम नहीं बना पाते.
उन्होंने कहा कि जब आप कार में बैठते हैं तो आप 6 इंच ऊपर उठ जाते हैं और ज़मीन पैरों के नीचे से छूट जाती है. जब आप कार चलाते हैं तो आपकी नज़र आपको छोड़ देती है, और आप टारगेट के होकर रह जाते हैं.
उन्होंने कहा कि आज हमारे जीने के तरीके भी नाटकीय होकर रह गए हैं. थियेटर में खेले जाने वाले नाटकों की स्थिति पर बात करते हुए सागर सरहदी ने कहा कि पहले के नाटकों को देखने के लिए हफ्ते से भी पहले हॉउस फुल हो जाया करते थे,आज हालत यह है कि एयरकंडीशंड हॉल में मात्र 35- 40 लोग मुश्किल से होते हैं. इसपर हमें गंभीरता से विचार करना होगा.
जब लेखक फिल्म के लिए लिखता है तो वह पहली लड़ाई स्वयं से ही नहीं बल्कि समाज और समाज के बाहर की विकृतियों से लड़ता है. नाटक इसी द्वंद्व को मंच पर सच्चाई के साथ पेश करता है, दर्शक की आँखों में आंखे डालकर देखता है, समाज से सवाल करता है. उर्दू नाटककार आफताब हसनैन के नाटकों की शोहरत से लगता है कि वह काफी अच्छा लिखते हैं, हमें अब उनके नाटकों को पढ़ना होगा.
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फिल्मों के लेखक व निदेशक सागर सरहदी |
निदेशक सागर सरहदी ने कहा है कि आज हम लोग बहुत बुरे हालात में जी रहे हैं. हमें चारों तरफ से घेरकर गुमराह किया जा रहा है. ताकि हम अपनी मूल समस्याओं से भटक जाएँ. सागर सरहदी उर्दू नाटककार आफताब हसनैन के सम्मान में महाराष्ट्र राज्य अकादमी की ओर से आयोजित एक साहित्यिक कार्यक्रम में बोल रहे थे.
जब मेरी लिखी फिल्म कभी-कभी हिट हुई तो मेरे सामने 40 फिल्मों के ऑफ़र आये लेकिन मैंने उनमें से किसी एक को भी साइन नहीं किया. कर लेता तो बाजार जैसी मूवी हम नहीं बना पाते.
उन्होंने कहा कि जब आप कार में बैठते हैं तो आप 6 इंच ऊपर उठ जाते हैं और ज़मीन पैरों के नीचे से छूट जाती है. जब आप कार चलाते हैं तो आपकी नज़र आपको छोड़ देती है, और आप टारगेट के होकर रह जाते हैं.
उन्होंने कहा कि आज हमारे जीने के तरीके भी नाटकीय होकर रह गए हैं. थियेटर में खेले जाने वाले नाटकों की स्थिति पर बात करते हुए सागर सरहदी ने कहा कि पहले के नाटकों को देखने के लिए हफ्ते से भी पहले हॉउस फुल हो जाया करते थे,आज हालत यह है कि एयरकंडीशंड हॉल में मात्र 35- 40 लोग मुश्किल से होते हैं. इसपर हमें गंभीरता से विचार करना होगा.
जब लेखक फिल्म के लिए लिखता है तो वह पहली लड़ाई स्वयं से ही नहीं बल्कि समाज और समाज के बाहर की विकृतियों से लड़ता है. नाटक इसी द्वंद्व को मंच पर सच्चाई के साथ पेश करता है, दर्शक की आँखों में आंखे डालकर देखता है, समाज से सवाल करता है. उर्दू नाटककार आफताब हसनैन के नाटकों की शोहरत से लगता है कि वह काफी अच्छा लिखते हैं, हमें अब उनके नाटकों को पढ़ना होगा.
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